Course Duration
28 Hours
28 Hours
Videos
02 hours each
02 hours each
No. Of Sessions
14
14
Sessions per week
7
7
Language
Hindi
Eligibility
कोई नहीं
कोई नहीं
Schedule of Classes
Starts on
-
06:00 pm to 08:00 pm IST
Regular classes onMon to Sun.
About the Teacher
Chandra Govind Das
About the Teacher
श्रीमान चंद्र गोविंद दास परम पूज्य श्री श्रीमद राधा गोविंद महाराज के शिष्य है। वो 2006 में इस्कॉन में जुडे तथा महाराज से 2012 में हरीनाम दीक्षा ग्रहण की थी। प्रभुजी इस्कॉन सुरत मंदीर से प्रचार सेवा कर रहे हैं। प्रभुजी गुरु महाराज की आज्ञा से भारत के कई क्षेत्रों में भागवत कथा के माध्यम से प्रचार कर रहे है और उन्होंने अपना पूर्ण जीवन प्रचार के लिए समर्पित किया है। प्रभुजी E.C इन्जीनियरिंग मे पढाई की है। वर्तमान में प्रभुजी सुरत इस्कॉन मेनेजमेंट एवम् प्रचार कार्य में पूर्ण रुप से समर्पित है।
Course Overview
पाठ्यक्रम विवरण :
ग्रन्थकर्ता श्रील रूप गोस्वामी, विभिन्न प्रामाणिक संप्रदायों के वैष्णवों के बीच सदियों पुराने विवाद को विराम देते हैं, उदा. - रामानुज, माध्वतत्त्ववादी, और माध्व-गौडीय वैष्णवों के बीच का मतान्तर यथा नारायण, राम या कृष्ण में से कौन सभी अवतारों के मूल स्रोत हैं। इसके अलावा, श्रील प्रभुपाद ने चै.च. आदि ५.४० के अपने तात्पर्य में कहा है : "पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीभगवान् के चतुर्व्यूह रूपों पर विचार करते हुए, जिन्हें वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के रूप में जाना जाता है, श्रीपाद शंकराचार्य के नेतृत्व में निर्विशेषवादियों ने वेदांत-सूत्र की व्याख्या निर्विशेषवादी विचारधारा के अनुसार ही की है। इन सूत्रों का गर्भितार्थ स्पष्ट करते हुए वृंदावन के छह गोस्वामीयों में से प्रमुख श्रील रूप गोस्वामी ने अपने लघु-भागवतामृत में - जो कि वेदांत-सूत्र पर एक प्राकृतिक टीका है - निर्विशेषवादियों को ठीक से प्रत्युत्तर दिया है।"
पाठ्यक्रम विषयवस्तु :
पाठ्यक्रम को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले भाग में, ग्रन्थकर्ता पारंपरिक न्याय पद्धति के अनुसार संक्षेप में किन्तु ठोस रूप से प्रमाणतत्त्व का वर्णन करते हैं और फिर विस्तृत रूप से पूर्व पक्ष को प्रस्तुत करके, उसका खण्डन करके और सिद्धान्त (वास्तविक निर्णायक तत्त्व) स्थापित करते हुए प्रमेय-तत्त्व का वर्णन करते हैं। इस ग्रन्थ में श्रीकृष्ण के विभिन्न विस्तारों, महावस्था और परावस्थाओं को विभिन्न श्रेणियों और उपश्रेणियों के साथ-साथ तथा भावार्थ दीपिका (श्रील श्रीधर स्वामी द्वारा श्रीमद्भागवतम् पर टीका), महाभारत और पुराणों जैसे विभिन्न ग्रंथों का उल्लेख करते हुए व्यवस्थित और विश्लेषणात्मक रूप से वर्णित किया गया है।
दूसरे भाग में, भक्तों की विभिन्न श्रेणियों के माधुर्य का वर्णन किया गया है, जो अंततः वृंदावन की गोपियों, विशेष रूप से श्रीमती राधारानी के कृष्णप्रेम माधुर्य में परिणत होता है। पाठ्यक्रम में श्रील बलदेव विद्याभूषण के द्वारा लिखी गई 'सारंग-रंगदा' नामक लघुभागवतमृत की टीका से दिया हुआ स्पष्टीकरण भी सम्मिलित है।
पाठ्यक्रम सामग्री : प्रत्येक सत्र पर संक्षिप्त नोट्स
लक्षित श्रोतागण : सभी के लिए।
मूल्यांकन पद्धति : पाठ्यक्रम के अंत में बहुविकल्पीय ऑनलाइन परीक्षा।
पाठ्यक्रम की पूर्वपात्रता : कोई नहीं
छात्रों के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश : पाठ्यक्रम शुरू होने से पहले छात्रों को भागवत-पुराण के बारे में कम से कम कुछ प्राथमिक ज्ञान आवश्यक है।
इस कोर्स से छात्रों को क्या मिलेगा?
1. वे स्पष्ट रूप से समझेंगे कि कृष्ण ही सभी अवतारों के स्रोत हैं।
2. वे भगवान् के विभिन्न अवतारों तथा उनकी श्रेणियों और उपश्रेणियों के बारे में व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करेंगे।
3. वे भक्ति के सर्वोच्च रसों बारे में संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट ज्ञान भी प्राप्त करेंगे।
इस पाठ्यक्रम में क्यों भाग लेना चाहिए?
इस पाठ्यक्रम में भाग लेने से अवतार-तत्त्व के बारे में कई भ्रांतियां दूर हो जाएंगी।